- ये चिनगारी चरागों की

ये चिनगारी चरागों की

 ये चिनगारी चरागों की, कहीं शोले न बन जाए । कहीं शबनम की ये बूंदे, बरस ओले न बन जाए ।।
निरन्तर बढ़ रही शहरें, ये धुआँ कारखानों की । ये हरियाली जो खेतों की, कहीं पीले न पड़ जाए ।।
ये आबादी शहरवादी, क्या जाने सुख की सच्चाई । ये पीपल आम की छाया, गाम टोले न मिट जाए ।।
संग
वसन्ती भाव में उपवन, सुमन का साज ओ शृंगार । बरसती पावस बिनु सरिता, तरस नाले न बन जाए ।।

अरविंद कुमार मिश्रा(नीरज)

हो सफल ये साधना
गीत गजल भाव सजल, साहित्य की सर्जना । शब्द-सदन श्वेत बदन, ले स्वीकार अर्चना ।।
आह से जो काव्य का है, उद्भव की सत्य राह । आज वही बात सही, हो रही है वेदना ५।
यादें अतीत की हैं. भोग वर्त्तमान का । संयोग जो मिला है आज, ले स्वीकार वंदना ।।
भविष्य में भी भूल से ना, भाव में अभाव हो । स्वभाव सहज मधुर राग, हो सफल ये साधना ।।
'नीरज' विनु नीर आज, हो रहा अधीर आज । शुभ ज्ञान का दे सूक्ष्म श्रोत, एक यही याचना ।।
वो क्यों याद आते हैंI
जिनको भूलना चाहा, वे क्यों याद आते हैं। करते हैं जिनको याद, वे क्यों भूल जाते हैं ।।
वे जो मेरा अपना, हम से दूर हो गये । वे लौट नही आते हैं, न मिल पाते हैं ।।
है कैसा किस्मत मेरा, क्यों लगता ऐसा फेरा । जब दुख ही जीवन जीना, तो सुख क्यों दिखलाते हैं ।।
संसार में सुख की तृष्णा, अपनों से मिलना-जुलना । जीवन का नहीं ठिकाना, कह दिल क्यों दहलाते हैं ।।
अरविंद कुमार मिश्रा(नीरज)