- शंकर मिश्र अयाची
छोड़कर किस ओर छोड़कर किस ओर मुझको जा बसी. ओ मेरी प्रियकामिनी मृदुभाषिनी ओ उर्वसी । जब छिटकती दसन दामिनी नभवसी, थी छलकती कलश जैसी वो हँसी ।। आज तुम हो दूर हमसे बेवसी, ओ मेरी प्रियकामिनी मृदुभाषिनी ओ उर्वसी । क्या कहो है भावना संभावना है फिर मिलन, क्या कहो गुलजार होगा गुलबदन मेरा चित-चमन ।। दे बता किसके बिछाए जाल में तू जा फँसी, ओ मेरी प्रियकामिनी मृदुभाषिनी ओ उर्वसी । तू गई तो ले गई मेरे चैन को, छोड़कर मुझसा विवश बेचैन को ।। क्या मिलेगा दरश फिर इस नैन को, ओ कला कमनीयता की रूपसी । ओ मेरी प्रियकामिनी मृदुभाषिनी ओ उर्वसी ।।

शंकर मिश्र

शंकर मिश्र भारत के एक प्रसिद्ध दार्शनिक थे। शंकर मिश्र द्वारा विरचित श्लोक "रसार्णव" नाम से प्रसिद्ध है। उनके पिता भवनाथ मिश्र अयाची भी प्रसिद्ध दार्शनिक थे। वैशेषिक सूत्रोपस्कार शंकर द्वारा रचित प्रसिद्ध ग्रन्थ है।
बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।

अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥

चलितश्चकितच्च्हन्नः प्रयाणे तव भूपते।


सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्त्राक्षः सहस्रपात् ॥

शंकर मिश्र ग्रंथावली-
१. १.गौरी दिगम्बर प्रहसन
 २. २.कृष्ण विनोद नाटक
 ३. ३.मनोभवपराभव नाटक
 ४. ४.रसार्णव
 ५. ५.दुर्गा-टीका
 ६. ६.वादिविनोद
 ७. ७.वैशेषिक सूत्र पर उपस्कार
 ८. ८.कुसुमांजलि पर आमोद
 ९. ९.खण्डनखण्ड-खाद्य टीका
 १०.१०.छन्दोगाह्निकोद्धार
 ११.श्राद्ध प्रदीप
 १२.प्रायश्चित प्रदीप।
 महामहोपाध्याय भावनाथ मिश्र अयाची  की कहानी बहुत ही चर्चित है. वैसे उनका पूरा नाम भवनाथ मिश्रा था. कहा जाता है कि 14वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में उनका जन्म हुआ था. उनके पास जितनी जमीन थी, उसमें उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी बिता ली. उन्होंने किसी से पैसे, कोई पुरस्कार और कोई दान नहीं लिए|

महामहोपाध्याय अयाची मिश्र काफी फेमस हैं. मिथिलांचल में उन्हें अयाची मिश्र के नाम से जाना जाता है. 14वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से लेकर 19वीं शताब्दी तक यहां पर गुरुकुल की शिक्षा दी गई. अयाची के पास कुल डेढ़ कट्टा जमीन थी, जिसमें उन्होंने पूरी जिंदगी बिता ली. अगर जमीन की खुदाई के दौरान उन्हें कोई भी चीज मिलती थी, तो वह उसे भी राजकीय संपत्ति समझकर राजकोष में जमा कर देते थे और उसपर वह अपना अधिकार नहीं जमाते थे|

आज भी आयाची मिश्र की डीह है सुरक्षित है|
मैथिला के महाकवि, महालेखक, महाज्ञानी, महामहो उपाध्याय अयाची मिश्र की डीह आज भी पंडौल प्रखंड के सरिसब पाही ग्राम में संरक्षित है. बता दें कि भावनाथ मिश्र को न्याय विशिष्ट अच्छी शिक्षा उनके बड़े भाई जीवनाथ मिश्रा से मिली थी. भवनाथ मिश्रा ने आयाचना का व्रत धारण किया, जिस कारण उन्हें हम अयाची मिश्र के नाम से जानते हैं. आयाचना का व्रत धारण करना इतना कठिन था कि यह व्रत उनके अलावा कोई नहीं कर पाया. उन्होंने पूरे जीवनभर किसी से कुछ भी नहीं मांगा. जितनी संपत्ति उनके पास थी, उसी में अपने पूरे परिवार का पालन-पोषण किया|